माँ मुझे भी जीने का हक दो…

0
55

हम सब कहते हैं कि हमारे विचार आधुनिक हो गये है, लेकिन आज भी एक माँ लड़कियों को | जन्म देने में गर्व नहीं महसूस करती, वह तभी | गौरवान्वित होती है जब एक लड़के को जन्म देती है आज भी कुछ माँ ऐसी हैं जो अपनी लड़कियों का गला भ्रूण में ही घोट देती हैं। आज भी हमारे देश में बालिका भ्रूण हत्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है, और फिर हो भी क्यों न, जब माँ ही अपनी कोख में पल रही बेटी की हत्या करती हो तो फिर किसी और से क्या उम्मीद की जा सकती है। बेटे से ही वंश चलता है, बेटा ही घर का चिराग है, और बेटा ही बुढ़ापे का सहारा है, जैसी दकिशानूसी बातों से आज भी लड़कियों को गुजरना पड़ता है। अपनी ही माँ के पुराने खयालो का होने से, उसे लड़की होने का कर्ज चुकाना पड़ता है। कहने को तो लड़कियाँ घर की लक्ष्मी होती है, लेकिन आज भी बेटे की चाहत में बेटियों की बलि चढ़ाई जाती है, आज भी उनकी चाहत, उनकी प्रतिभा ऊर्जा तथा योग्यता को कुचला एवं दबाया जाता है। एक अजीब सी स्थिति है। एक ओर तो चतुर्दिक समता, समानता, आधुनिकता एवं प्रगति का शोर है। नया जमाना हैं, हम वैश्वीकरण और भूमंडलीकरण के वसुधैव कुटुम्बकम भाव के साथ आगे बढ़ रहे है, दूसरी ओर अपनी पुरानी मानसिकता लडके, लड़की फर्क समझना नहीं छोड़ते, आखिर ऐसा क्यों? यदि कहे कि ? भारत में लड़कियों ने प्रगति नहीं की, तो यह झूठ हैं,

सच तो यह है कि वह आज आसमान में पंख फैलाकर

उड़ रही हैं, बस फर्क इतना है कि कहीं-कहीं उनके पंखों को कचल दिया जाता है, लेकिन इसमें पूरा दोष पुरषों का ही नहीं है, काफी हद तक उनके स्वयं के वर्ग का है।

एक लड़की को माँ , बेटी, देवरानी, जेठानी ननद, भोजाई के रूप में प्रताडित एवं लांक्षित किया जाता है, यानि सूरज के आगे बादल बनकर महिलाएँ ही रही हैं | शीशा बनकर एक दूसरे के पंख उसी ने झुलसाए यानि अपनी तबाही का मंजर भी स्वयं ही बनाया और आह भी खुद ही भरी, लेकिन इन सभी कठिनाइयों के बावजूद लड़कियों ने सपने देखना बन्द नहीं किया और उनकी इसी हिम्मत ने उनके सपनों में इन्द्रधनुषीय रंग भरे | आज हमीर देश में लड़कियों ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है और इस बात का यकीन दिलाया है कि वह सब कुछ कर सकती हैं जो एक लड़का कर सकता है। डॉक्टर , इन्जीनियर से लेकर हर क्षेत्र में लड़कियों ने अपनी पहचान बनाई और चाँद की बुलन्दियों को हुआ किसी भी क्षेत्र में उनका सानी नहीं है, लेकिन फिर भी अथाह प्रतिभा होने के बावजूद उसके रास्ते में लड़की होना उसके आड़े आ जाता है। लड़कियाँ आज भौतिक और मानसिक दोनों रूप से क्षितिज छू रही हैं, उसने घर के बाहर पैर निकाल कर अपनी एक अलग पहचान बना ली है। आज वह अपने सपनों को साकार करने के साथ साथ अपने माता पिता की जिम्मेदारियों को भी | एक बेटे की तरह निभा रही हैं लेकिन फिर क्यों उन्हें अब भी हीन दृष्टि से देखा जाता है। लड़की परिवार के आंगन का नन्हा सा फूल होती है। तो फिर क्यों उन्हें उलाहना के थपेडों से बिखरता जीवन जीना पड़ता हैं। यूं तो सभी लोग बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। कि लडकी देश का भविष्य है, घर की लक्ष्मी है लेकिन हम अपने गिरेवान में झाँकते हैं तब महसूस | होता है कि हम भी कहीं ना कहीं प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में इनकी हत्या के भागीदार हैं। अशिक्षित ही नहीं बल्कि ऊँचे प्रदभार वाले शिक्षित परिवारों में भी गर्भ में बालिका भ्रूण का पता चलने पर अबॉर्शन के रूप में एक जीवित लडकी को गर्भ में ही कुचल कर उसके अस्तित्व की समाप्त कर दिया, जाता है, बेटियाँ भी घर की चिराग है वे भी इन्सान है , जननी है जो हमारे अस्तित्व का प्रमाण है। इनकी रक्षा हमारा कर्तव्य है। इसलिए आज ही संकल्प ले कि कन्या भ्रूण हत्या न करे न कराये | इस पर अंकुश लगाकर नन्हीं बेटियों को भी जीने का अधिकार दें ।

मैं अजन्मी हूँ अंश तुम्हारा,
फिर भी क्यों गैर बनाते हो ।

है मेरा क्या दोष,
जो ईश्वर की मर्जी को ठुकराते हो।

मैं दुर्गा लक्ष्मी भवानी हूँ,
भावों के पुंज से रची निज रचती सृजन कहानी हूँ ।

लडकी होना कोई पाप नहीं
फिर मैं तो अभी अजन्मी हूँ ।

तो फिर क्यों मुझसे इतनी नफरत करते हो ।
मेरी तो बस इतनी विनती है ।

मुझे भी इस दुनिया में आने दो । मुझे भी जीने का अधिकार दो

– प्रांजल भारत दिवाकर
एच ए एल कालेज आफ साइंस एन्ड कामर्स टाऊनशिप ओझर. (T.Y.B.Com)


The Point Now न्यूजचे अपडेट्स मिळवण्यासाठी आम्हाला फॉलो करा

फेसबुकट्विटरयुट्युबइंस्टाग्राम

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here